📖 परिचय
श्री कृष्ण चालीसा भगवान श्रीकृष्ण के दिव्य स्वरूप, लीलाओं और भक्तों के प्रति उनके प्रेम व रक्षण को समर्पित एक भक्तिपूर्ण स्तुति है।
इसमें श्रीकृष्ण के मधुर वाणी, मनमोहक रूप, बंसीधारी स्वरूप तथा रास, बाल लीलाओं और भगवत गीता उपदेश का भावपूर्ण वर्णन किया गया है।
इस चालीसा में “जय यदुनंदन, जय जगवंदन” जैसे चौपाई पद श्रीकृष्ण के बालक रूप से लेकर द्वारिकाधीश स्वरूप तक की महिमा का वर्णन करते हैं।
यह चालीसा विशेष रूप से कृष्ण जन्माष्टमी, रविवार या गुरुवार की भक्ति, प्रातः या संध्या आरती, तथा राधा-कृष्ण मंदिरों में भजन संध्या के समय गाई जाती है।
श्रीकृष्ण चालीसा का पाठ भक्तों में प्रेम, शांति, करुणा और विश्वास का संचार करता है।
यह स्तुति मनोकामना पूर्ति, मन की शुद्धि और सकारात्मक ऊर्जा के लिए अत्यंत प्रभावशाली मानी जाती है।
॥ दोहा ॥
बंशी शोभित कर मधुर,
नील जल्द तनु श्यामल ।
अरुण अधर जनु बिम्बा फल,
नयन कमल अभिराम ॥
पुरनिंदु अरविन्द मुख,
पिताम्बर शुभा साज्ल ।
जय मनमोहन मदन छवि,
कृष्णचंद्र महाराज ॥
॥चौपाई॥
जय यदुनंदन जय जगवंदन ।
जय वासुदेव देवकी नंदन ॥
जय यशोदा सुत नन्द दुलारे ।
जय प्रभु भक्तन के रखवारे ॥
जय नटनागर नाग नथैया ।
कृष्ण कन्हैया धेनु चरैया ॥
पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो ।
आओ दीनन कष्ट निवारो ॥
बंसी मधुर अधर धरी तेरी ।
होवे पूरण मनोरथ मेरी ॥
आओ हरी पुनि माखन चाखो ।
आज लाज भक्तन की राखो ॥
गोल कपोल चिबुक अरुनारे ।
मृदुल मुस्कान मोहिनी डारे ॥
रंजित राजिव नयन विशाला ।
मोर मुकुट वैजयंती माला ॥
कुंडल श्रवण पीतपट आछे ।
कटी किंकिनी काछन काछे ॥
नील जलज सुंदर तनु सोहे ।
छवि लखी सुर नर-मुनि मन मोहे ॥
मस्तक तिलक अलक घुंघराले ।
आओ श्याम बांसुरी वाले ॥
करि पी पान, पुतनाहीं तारयो ।
अका बका कागा सुर मारयो ॥
मधुवन जलत अग्नि जब ज्वाला ।
भये शीतल, लखिताहीं नंदलाला ॥
सुरपति जब ब्रिज चढ़यो रिसाई ।
मूसर धार बारि बरसाई ॥
लगत-लगत ब्रिज चाहं बहायो ।
गोवर्धन नखधारी बचायो ॥
लखी यशोदा मन भ्रम अधिकाई ।
मुख महँ चौदह भुवन दिखाई ॥
दुष्ट कंस अति ऊधम मचायो ।
कोटि कमल कहाँ फूल मंगायो ॥
नाथी कालियहिं तब तुम लीन्हें ।
चरनचिंह दै निर्भय किन्हें ॥
करी गोपिन संग रास विलासा ।
सब की पूरण करी अभिलाषा ॥
केतिक महा असुर संहारयो ।
कंसहि केश पकडी दी मारयो ॥
मातु पिता की बंदी छुडाई ।
उग्रसेन कहाँ राज दिलाई ॥
माहि से मृतक छहों सुत लायो ।
मातु देवकी शोक मिटायो ॥
भोमासुर मुर दैत्य संहारी ।
लाये शत्दश सहस कुमारी ॥
दी भिन्हीं त्रिन्चीर संहारा ।
जरासिंधु राक्षस कहां मारा ॥
असुर वृकासुर आदिक मारयो ।
भक्तन के तब कष्ट निवारियो ॥
दीन सुदामा के दुःख तारयो ।
तंदुल तीन मुठी मुख डारयो ॥
प्रेम के साग विदुर घर मांगे ।
दुर्योधन के मेवा त्यागे ॥
लाखी प्रेमकी महिमा भारी ।
नौमी श्याम दीनन हितकारी ॥
मारथ के पार्थ रथ हांके ।
लिए चक्र कर नहीं बल थाके ॥
निज गीता के ज्ञान सुनाये ।
भक्तन ह्रदय सुधा बरसाए ॥
मीरा थी ऐसी मतवाली ।
विष पी गई बजाकर ताली ॥
राणा भेजा सांप पिटारी ।
शालिग्राम बने बनवारी ॥
निज माया तुम विधिहीन दिखायो ।
उरते संशय सकल मिटायो ॥
तव शत निंदा करी ततकाला ।
जीवन मुक्त भयो शिशुपाला ॥
जबहीं द्रौपदी तेर लगाई ।
दीनानाथ लाज अब जाई ॥
अस अनाथ के नाथ कन्हैया ।
डूबत भंवर बचावत नैया ॥
सुन्दरदास आस उर धारी ।
दयादृष्टि कीजे बनवारी ॥
नाथ सकल मम कुमति निवारो ।
छमोबेग अपराध हमारो ॥
खोलो पट अब दर्शन दीजे ।
बोलो कृष्ण कन्हैया की जय ॥
॥ दोहा ॥
यह चालीसा कृष्ण का,
पथ करै उर धारी ।
अष्ट सिद्धि नव निद्धि फल,
लहे पदार्थ चारी ॥
🙏 संबंधित भजन
- राधा कृष्ण अष्टकम्
- श्री कृष्णाष्टक
- गोविंद दामोदर स्तोत्र
- मधुराष्टकम्
- गोपिका गीत
- श्री राधा चालीसा
- श्री कृष्ण आरती – जय कन्हैया लाल की
- श्री रासपंचाध्यायी (भागवत गीत)