सरस्वती चालीसा हिंदी में | Saraswati Chalisa Lyrics in Hindi PDF

📖 परिचय

श्री सरस्वती चालीसा मां सरस्वती की स्तुति में रचित 40 चौपाइयों का भक्ति स्तोत्र है। सरस्वती देवी ज्ञान, वाणी, कला और बुद्धि की देवी हैं। इस चालीसा का पाठ विद्यार्थियों, लेखकों, संगीतकारों और सभी ज्ञानार्जन करने वालों के लिए अत्यंत लाभकारी माना जाता है। यह भजन मां की कृपा पाने और मन की एकाग्रता बढ़ाने में सहायक होता है। यह चालीसा मां सरस्वती के पारंपरिक स्तोत्र का विशेष संस्करण है, जो बुद्धि, विद्या और कला की देवी के रूप में उनकी महिमा का विस्तृत वर्णन करता है।

दोहा

जनक जननि पद कमल रज,निज मस्तक पर धारि ।
बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि ॥

पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु ।
रामसागर के पाप को, मातु तुही अब हन्तु ॥

चौपाई

जय श्री सकल बुद्धि बलरासी ।
जय सर्वज्ञ अमर अविनासी ॥

जय जय जय वीणाकर धारी ।
करती सदा सुहंस सवारी ॥

रूप चतुर्भुजधारी माता ।
सकल विश्व अन्दर विख्याता ॥

जग में पाप बुद्धि जब होती ।
जबहि धर्म की फीकी ज्योती ॥

तबहि मातु ले निज अवतारा ।
पाप हीन करती महि तारा ॥

बाल्मीकि जी थे बहम ज्ञानी ।
तव प्रसाद जानै संसारा ॥

रामायण जो रचे बनाई ।
आदि कवी की पदवी पाई ॥

कालिदास जो भये विख्याता ।
तेरी कृपा दृष्टि से माता ॥

तुलसी सूर आदि विद्धाना ।
भये और जो ज्ञानी नाना ॥

तिन्हहिं न और रहेउ अवलम्बा ।
केवल कृपा आपकी अम्बा ॥

करहु कृपा सोइ मातु भवानी ।
दुखित दीन निज दासहि जानी ॥

पुत्र करै अपराध बहूता ।
तेहि न धरइ चित सुन्दर माता ॥

राखु लाज जननी अब मेरी ।
विनय करूं बहु भांति घनेरी ॥

मैं अनाथ तेरी अवलंबा ।
कृपा करउ जय जय जगदंबा ॥

मधु कैटभ जो अति बलवाना ।
बाहुयुद्ध विष्णू ते ठाना ॥

समर हजार पांच में घोरा ।
फिर भी मुख उनसे नहिं मोरा ॥

मातु सहाय भई तेहि काला ।
बुद्धि विपरीत करी खलहाला ॥

तेहि ते मृत्यु भई खल केरी ।
पुरवहु मातु मनोरथ मेरी ॥

चंड मुण्ड जो थे विख्याता ।
छण महुं संहारेउ तेहि माता ॥

रक्तबीज से समरथ पापी ।
सुर-मुनि हृदय धरा सब कांपी ॥

काटेउ सिर जिम कदली खम्बा ।
बार बार बिनवउं जगदंबा ॥

जग प्रसिद्ध जो शुंभ निशुंभा ।
छिन में बधे ताहि तू अम्बा ॥

भरत-मातु बुधि फेरेउ जाई ।
रामचन्द्र बनवास कराई ॥

एहि विधि रावन वध तुम कीन्हा ।
सुर नर मुनि सब कहुं सुख दीन्हा ॥

को समरथ तव यश गुन गाना ।
निगम अनादि अनंत बखाना ॥

विष्णु रूद्र अज सकहिं न मारी ।
जिनकी हो तुम रक्षाकारी ॥

रक्त दन्तिका और शताक्षी ।
नाम अपार है दानव भक्षी ॥

दुर्गम काज धरा पर कीन्हा ।
दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा ॥

दुर्ग आदि हरनी तू माता ।
कृपा करहु जब जब सुखदाता ॥

नृप कोपित जो मारन चाहै ।
कानन में घेरे मृग नाहै ॥

सागर मध्य पोत के भंगे ।
अति तूफान नहिं कोऊ संगे ॥

भूत प्रेत बाधा या दुःख में ।
हो दरिद्र अथवा संकट में ॥

नाम जपे मंगल सब होई ।
संशय इसमें करइ न कोई ॥

पुत्रहीन जो आतुर भाई ।
सबै छांड़ि पूजें एहि माई ॥

करै पाठ नित यह चालीसा ।
होय पुत्र सुन्दर गुण ईसा ॥

धूपादिक नैवेद्य चढावै ।
संकट रहित अवश्य हो जावै ॥

भक्ति मातु की करै हमेशा ।
निकट न आवै ताहि कलेशा ॥

बंदी पाठ करें शत बारा ।
बंदी पाश दूर हो सारा ॥

करहु कृपा भवमुक्ति भवानी ।
मो कहं दास सदा निज जानी ॥

दोहा

माता सूरज कान्ति तव,अंधकार मम रूप ।
डूबन ते रक्षा करहु,परूं न मैं भव-कूप ॥

बल बुद्धि विद्या देहुं मोहि,सुनहु सरस्वति मातु ।
अधम रामसागरहिं तुम,आश्रय देउ पुनातु ॥

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